ईरान-अमेरिका संघर्ष में कहां खड़ा है भारत?
डोनाल्ड ट्रंप के इस रवैया को देखकर कई सवाल उठते हैं,पहला यह कि डोनाल्ड ट्रंप के इस तरह के फरमान दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं,क्या डोनाल्ड ट्रंप को यह नहीं मालूम था कि ईरान के साथ की गई डील जिसे समाप्त करने का निर्णय अकेले अमेरिका नहीं ले सकता,यदि आपको यह मालूम था तो इसका मतलब यह हुआ कि वह अपने यूरोपीय सहयोगियो को अपने सहायक मानते हैं बराबर का साथी नहीं, ट्रंप प्रशासन का भारत चीन और पाकिस्तान सहित एशिया के अन्य देशों को इरान से संबंध तोड़ने का फरमान जारी करना क्या अमेरिकी सर्वोच्च स्तर को थोपने का नाजायज प्रयास नहीं है,अंतिम प्रश्न यह है कि इसके बाद भारत कौनसी राह चुनेगा क्या वह ईरान से तेल खरीदना बंद करेगा अथवा उसे जारी रखेगा, भारत ईरान के साथ संबंध समाप्त करने का निर्णय लेगा तो उससे भारत की ऊर्जा जरूरतों पर क्या प्रभाव पड़ेगा
इरान अमेरिका के बीच संघर्ष क्यों है
किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आवश्यक है कि यह जानने की कोशिश की जाए कि ईरान के साथ किया गया समझौता था क्या, इस समझौते के प्रति तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सर्वोच्च वरीयता प्रदान करते क्यों दिखे थे,14 जुलाई 2015 का दिन कम से कम बराक ओबामा के लिए बेहद महत्वपूर्ण था,जब 19 दिनों तक चली सौदेबाजी तथा अस्थिर वातावरण के पश्चात बुझे बुझे वार्ताकारों ने ओबामा के इरान मिशन अथवा" ईरान के परमाणु कार्यक्रम "को रोकने संबंधी ऐतिहासिक सफलता प्राप्त कर ली थी परिणाम यह हुआ कि तदर्थ रूप से ही सही लेकिन पश्चिमी शक्तियों ने ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोक लिया और ईरान ने पश्चिमी देशों पर लगाए गए प्रतिबंधों से निजात पाने तथा मुक्ता आर्थिक गतिविधियों के लिए रास्ता खोज लिया!
भारत अमेरिका ईरान
जहां भारत अमेरिका के साथ मिलकर अपने आर्थिक, रक्षा, बैंकिंग,तथा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी सुविकसित छवि रखना चाहता है वही ईरान के साथ मिलकर ऊर्जा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहता है विश्व पटल पर फिर से शीत युद्ध जैसी अवधारणा बन रही हैं जहां रूस, ईरान का विकास मॉडल अलग है वही पूंजीवाद समर्थित अमेरिका, फ्रांस ,जापान, जर्मनी का मॉडल अलग है भारत के सामने समस्या यह है कि जहां अमेरिका भारत को आर्थिक निर्यात के साथ अग्रसर कर रहा है वहीं रूस, ईरान भारत के ऊर्जा कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रहे हैं!
बुद्धि नारायण
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