भारत और क्षेत्रीय संगठन
भारत और क्षेत्रीय संगठन
पाकिस्तान में इमरान खान के नए प्रधानमंत्री चुने जाने के बावजूद भारत का ध्यान क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सार्क की बजाय बिम्सटेक की ओर अधिक है, जो समय की मांग के साथ भारत के रणनीतिक सूझ-बूझ के तालमेल का परिचायक है। अक्तूबर 2016 में, सार्क शिखर सम्मेलन को रद्द करने के ठीक बाद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने गोवा में ब्रिक्स-बिम्सटेक आउटरीच शिखर सम्मेलन को बुलाया और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बिम्सटेक को भारत के प्राथमिक संगठन के रूप में पुनर्जीवित करने का वादा किया। इस लेख के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि सार्क और बिम्सटेक संगठन क्या हैं तथा क्यों बिम्सटेक भारत के लिये सार्क की तुलना में अधिक प्रासंगिक है?
बिम्सटेक और सार्क संगठन
बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक)
बिम्सटेक और सार्क संगठन
बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक)
§
एक
उप-क्षेत्रीय
आर्थिक
सहयोग
समूह
के
रूप
में
बिम्सटेक
(बांग्लादेश,
भारत,
म्याँमार,
श्रीलंका
और
थाईलैंड
तकनीकी
और
आर्थिक
सहयोग)
का
गठन
जून
1997 में
बैंकाक
में
किया
गया
था।
§
वर्तमान
में
इसमें
सात
सदस्य
हैं
जिनमें
दक्षिण
एशिया
से
पाँच
देश
बांग्लादेश,
भूटान,
भारत,
नेपाल,
श्रीलंका
तथा
दक्षिण-पूर्व
एशिया
से
दो
देश
म्याँमार
और
थाईलैंड
शामिल
हैं।
प्रथम
बिम्सटेक
सम्मेलन
का
आयोजन
थाइलैंड
द्वारा
30 जुलाई,
2004 को
बैंकाक
में
किया
गया
था,
जो
बिम्सटेक
के
उप
क्षेत्रीय
समूह
को
नई
दिशा
देने
वाली
घटना
थी।
§
इस
सम्मेलन
में
बिम्सटेक
(बांग्लादेश,
भारत,
म्याँमार,
श्रीलंका
और
थाईलैंड
तकनीकी
और
आर्थिक
सहयोग)
का
नाम
बदलकर
बिम्सटेक
(बहुक्षेत्रीय
तकनीकी
और
आर्थिक
सहयोग
के
लिये
बंगाल
की
खाड़ी
पहल)
रखा
गया।
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है।
§
इस
समूह
में
अफगानिस्तान,
बांग्लादेश,
भूटान,
भारत,
मालदीव,
नेपाल,
पाकिस्तान
और
श्रीलंका
शामिल
हैं|
2007 से
पहले
सार्क
के
सात
सदस्य
थे,
अप्रैल
2007 में
सार्क
के
14वें
शिखर
सम्मेलन
में
अफगानिस्तान
इसका
आठवाँ
सदस्य
बन
गया
था।
§
सार्क
की
स्थापना
8 दिसंबर,
1985 को
हुई
थी
और
इसका
मुख्यालय
काठमांडू
(नेपाल)
में
है।
सार्क
का
प्रथम
सम्मेलन
ढाका
में
दिसंबर
1985 में
हुआ
था।
§
प्रत्येक
वर्ष
8 दिसंबर
को
सार्क
दिवस
मनाया
जाता
है।
संगठन
का
संचालन
सदस्य
देशों
के
मंत्रिपरिषद
द्वारा
नियुक्त
महासचिव
करते
हैं,
जिसकी
नियुक्ति
तीन
साल
के
लिये
देशों
के
वर्णमाला
क्रम
के
अनुसार
की
जाती
है।
भारत
के
लिये
बिम्सटेक
का
महत्त्व
:
§
दरअसल,
पाकिस्तान
की
नकारात्मक
भूमिका
के
कारण
भारत
सार्क
के
बदले
बिम्सटेक
को
ज़्यादा
प्रमुखता
दे
रहा
है।
§
सार्क
की
प्रगति
में
जहाँ
पाकिस्तान
बाधक
बना
हुआ
है,
वहीं
पाकिस्तान
बिम्सटेक
का
सदस्य
नहीं
है
अतः
इसकी
प्रगति
में
बाधाएँ
अपेक्षाकृत
कम
होंगी।
§
इसके
अलावा
भारत
की
बिम्सटेक
में
सक्रिय
भागीदारी
से
भारत
की
एक्ट
ईस्ट
पॉलिसी
पर
सकारात्मक
प्रभाव
पड़ेगा।
§
बिम्सटेक
सदस्यों
से
बहुस्तरीय
संबंध
स्थापित
कर
भारत
अपने
पूर्वोत्तर
क्षेत्र
के
विकास
को
गति
प्रदान
कर
सकता
है।
§
बिम्सटेक
भारत-म्याँमार
के
बीच
कलादान
मल्टीमॉडल
पारगमन
परिवहन
परियोजना
और
भारत-म्याँमार-थाईलैंड
(IMT) राजमार्ग
परियोजना
के
विकास
में
भी
सहयोग
की
उम्मीद
की
जा
सकती
है।
§
यह
संगठन
दक्षिण
एशिया
और
दक्षिण
पूर्वी
देशों
के
बीच
सेतु
की
तरह
काम
करता
है।
उल्लेखनीय
है
कि
इस
समूह
में
दो
देश
दक्षिणपूर्वी
एशिया
के
भी
हैं।
§
म्याँमार
और
थाईलैंड
भारत
को
दक्षिण
पूर्वी
इलाकों
से
जोड़ने
के
लिये
बेहद
अहम
है।
इससे
भारत
के
व्यापार
को
बढ़ावा
मिलेगा।
§
इसके
अलावा,
नेपाल
और
भूटान
जैसे
स्थल-आबद्ध
देशों
के
लिये
बिम्सटेक
के
माध्यम
से
क्षेत्रीय
संपर्क
बढ़ाने
के
पर्याप्त
अवसर
हैं।
§
सीमापार
आतंकवाद
और
उग्रवाद
से
मुकाबला
करने
के
लिये
भारत
को
ऐसे
क्षेत्रीय
संगठन
की
आवश्यकता
है
जिसके
सदस्य
देश
आतंकवाद
के
मुद्दे
पर
वैचारिक
रूप
से
एकमत
हों।
§
बिम्सटेक
के
माध्यम
से
भारत
अपने
पड़ोसी
देशों
के
साथ
संपर्क
बढ़ाकर
अपने
व्यापार
के
साथ
ही
ब्लू-इकॉनोमी
को
बढ़ावा
दिया
जा
सकता
है।
§
बिम्सटेक
के
माध्यम
से
भारत
आसियान
देशों
के
साथ
संपर्क
बढ़ा
सकता
है।
§
बिम्सटेक
संबंधित
संपूर्ण
क्षेत्र
में
मुक्त
व्यापार
समझौता,
गरीबी
उन्मूलन,
पर्यटन,
ऊर्जा
और
जलवायु
परिवर्तन
और
यहाँ
तक
कि
आतंकवाद
और
आपदा
प्रबंधन
सहित
क्षेत्रीय
सहयोग
मज़बूत
बनाने
के
लिये
अनिवार्य
है।
बिम्सटेक
की
प्रगति
के
समक्ष
आने
वाली
प्रमुख
चुनौतियाँ:
§
भारत
बिम्सटेक
का
सबसे
बड़ा
सदस्य
है
लेकिन
मज़बूत
नेतृत्व
प्रदान
नहीं
कर
पाने
के
कारण
भारत
की
सदैव
आलोचना
होती
रही
है।
§
सबसे
पहले
तो
यह
संगठन
तब
तक
प्रगति
नहीं
करेगा
जब
तक
कि
बिम्सटेक
सचिवालय
को
महत्त्वपूर्ण
रूप
से
अधिकार
नहीं
दिया
जाता
है।
उल्लेखनीय
है
कि
लंबे
समय
से
बिम्सटेक
के
लिये
स्थायी
सचिवालय
की
स्थापना
की
मांग
की
जाती
रही
है।
§
यह
क्षेत्र
विभिन्न
बहुपक्षीय
संगठनों
का
नेतृत्व
करते
हैं
इनमें
थाईलैंड
और
म्याँमार
भी
बिम्सटेक
के
बजाय
आसियान
को
अधिक
महत्त्व
देते
हैं।
§
इसके
अलवा
बिम्सटेक
के
सदस्य
राष्ट्रों
में
आपसी
समन्वय
की
कमी
है
जिसके
चलते
नियमित
एवं
प्रभावशाली
वार्ताओं
का
आयोजन
नहीं
होता।
§
बिम्सटेक
के
अंतर्गत
क्षेत्रीय
संपर्क
का
कार्य
काफी
धीमी
गति
से
हो
रहा
है,
जबकि
BCIM (बांग्लादेश-भारत-म्यांमार-चीन)
इकोनॉमिक
कॉरीडोर
की
स्थापना
के
लिये
चीन
काफी
सक्रिय
है।
§
गौरतलब
है
कि
BCIM (बांग्लादेश-भारत-म्यांमार-चीन)
इकोनॉमिक
कॉरिडोर
चीन
की
एक
महत्त्वाकांक्षी
परियोजना
है,
जो
भारत,
बांग्लादेश,
चीन
एवं
म्याँमार
के
बीच
रेल
एवं
सड़क
संपर्क
स्थापित
करेगी।
इसके
अलावा
इसके
द्वारा
भारत
के
कोलकाता,
चीन
के
कुनमिंग,
म्याँमार
के
मांडले
और
बांग्लादेश
के
ढाका
और
चटगाँव
को
आपस
में
जोड़ा
जाएगा।
§
बिम्सटेक
क्षेत्र
में
व्यापारिक
गतिविधियों
के
विकास
के
लिये
एक
मुक्त
व्यापार
समझौते
(FTA) पर
सदस्य
देशों
के
बीच
सहमति
अभी
नहीं
बन
पाई
है।
§
संगठन
के
कुछ
सदस्य
देशों
के
बीच
शरणार्थियों
की
समस्या
क्षेत्र
में
राजनीतिक,
सामाजिक
और
आर्थिक
असंतुलन
पैदा
कर
रही
है।
क्या
किये
जाने
की
आवश्यकता
है?
§
बिम्सटेक
के
सभी
सदस्य
देशों
की
सक्रिय
भागीदारी
एवं
परस्पर
समन्वय
के
माध्यम
से
इस
क्षेत्रीय
संगठन
को
आर्थिक
विकास
का
केंद्र
बनाने
के
लिये
भारत
को
अपने
कदम
आगे
बढ़ाने
होंगे।
हो
§
इसके
अलवा
संगठन
के
बेहतर
कार्यान्वयन
के
लिये
कम
प्राथमिकता
वाले
क्षेत्रों
पर
भी
ध्यान
केंद्रित
करना
होगा।
§
भारत
को
अनौपचारिक
रूप
से
बिम्सटेक
के
नेतृत्वकर्त्ता
की
भूमिका
निभानी
होगी
और
इसके
व्यावहारिक
प्रतिबद्धताओं
के
लिये
एक
मिशाल
साबित
करना
होगा।
§
इसके
सदस्य
देशों
की
तकनीकी
विशेषज्ञों
की
सहायता
लेकर
बहुपक्षीय
एजेंडा
निर्धारित
करने
और
शिखर
सम्मेलन
तथा
मंत्रिस्तरीय
बैठकों
के
बीच
चालक
दल
के
रूप
में
कार्य
करने
के
लिये
सचिवालय
को
स्वायत्तता
प्रदान
करना
होगा।
§
साथ
ही
सदस्य
देशों
द्वारा
इस
संगठन
के
लिये
वित्तीय
और
मानव
संसाधन
की
सुनिश्चितता
को
बनाए
रखना
भी
आवश्यक
है।
§
सदस्य
देशों
द्वारा
समय
पर
सभी
प्रतिबद्धताओं
को
पूरा
करना
ही
अक्सर
बहुपक्षीय
संगठन
की
आधी
सफलता
का
निर्धारण
करता
है।
सार्क के बगैर
भी भारत
दक्षिण एशियाई
देशों के
बीच सहयोग
को बढ़ाने
के लिये
कई स्तरों
पर काम
कर रहा
है। भारत
बिम्सटेक को
सफल बनाने
के लिये
इसके सीमित
संसाधनों के
साथ, मुख्य
रूप से
माल, पूंजी,
सेवाओं और
लोगों का
मुक्त प्रवाह
हेतु भौतिक
और नियामक
बाधाओं को
दूर करने
का प्रयास
कर रहा
है। बिम्सेटक
निश्चित तौर
पर अब
इस क्षेत्र
का सबसे
अहम संगठन
साबित होगा।
भारत ’ब्रांड
बिम्सटेक' को
स्थापित करने
के लिये
कारोबार व
पर्यटन की
प्रदर्शनी के
साथ-साथ
सदस्य देशों
की स्टार्ट
अप कंपनियों
के लिये
अलग से
एक सेमिनार
का आयोजन
करने का
भी इच्छुक
है। हालाँकि,
इस क्षेत्र
की तमाम
चुनौतियों के
बावजूद सुरक्षा
संवाद या
आतंकवाद सहयोग
पहल, क्षेत्रीय
कनेक्टिविटी बढ़ाने
और बंगाल
समुदाय की
खाड़ी को
पुनर्जीवित करने
के लिये
बिम्सटेक का
कोई विकल्प
इतना कारगर
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